Swadesi Hathkargha: राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष 24/01/2020

‘हारा और पाया’

इतने बरसों इतना तरसी
एक भोर से दूर भोर तक,
शत क्षण हारे, एक क्षण पाया।

प्रेम, न्याय और अभिप्राय की,
उम्मीदों आकांक्षाओं तक
वैदेही सम, तजती काया।

सहनशीलता गहनों के संग,
क़दम न रुकते, तनिक विरह तक,
आंचल में यूं रूह संभाले,
सब कुछ हारा, खुद को पाया।

©डॉ. चन्दन
  professor by profession
 Neemrana, Alwar

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